महामृत्युंजय यंत्र प्राणप्रतिष्ठाति/Activated/Energized
सम्पूर्ण महामृत्युंजय यंत्र प्राणप्रतिष्ठाति/Activated/Energized
ॐ ह्रौं जूं सः। ॐ भूर्भवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनांन्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूं ह्रौं ॐ ।
महामृत्युंजय मंत्र भगवान शिव शंकर को प्रसन्न करने वाला खास मंत्र है। इस मंत्र का उल्लेख ऋग्वेद से लेकर यजुर्वेद तक में मिलता है। यदि कोई व्यक्ति भयमुक्त, रोगमुक्त जीवन चाहता है और अकाल मृत्यु के डर से खुद को दूर करना चाहता है, तो उसे ‘महामृत्युंजय मंत्र’ का जाप करना चाहिए। महामृत्युंजय मंत्र भगवान भोलेनाथ का सबसे प्रिय मंत्र है। इस मंत्र के जप से मनुष्य की सभी बाधाएं और परेशानियां खत्म हो जाती हैं। यह मंत्र मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है और इसे मोक्ष मंत्र मानते हैं जो दीर्घायु और अमरता प्रदान करता है। शिवपुराण और अन्य ग्रंथो में भी इसके महत्व के बारे में विस्तार से बताया गया है। शिवपुराण के अनुसार, महामृत्युंजय मंत्र के जप से व्यक्ति को संसार के सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।
कब करें महामृत्युंजय मंत्र जाप?
महामृत्युंजय मंत्र जपने से अकाल मृत्यु तो टलती ही है, आरोग्यता की भी प्राप्ति होती है। स्नान करते समय शरीर पर लोटे से पानी डालते वक्त इस मंत्र का जप करने से स्वास्थ्य-लाभ होता है। दूध में निहारते हुए इस मंत्र का जप किया जाए और फिर वह दूध पी लिया जाए तो यौवन की सुरक्षा में भी सहायता मिलती है। साथ ही इस मंत्र का जप करने से बहुत सी बाधाएँ दूर होती हैं, इस मंत्र के जाप करते ही जाप्क्रता के शरीर के चारोंओर एक अभेद सुरक्षा कवच स्थापित हो जाता है जो कवच । अतः इस मंत्र का यथासंभव जप करना चाहिए। निम्नलिखित स्थितियों में इस मंत्र का जाप कराया जाता है।
· ज्योतिष के अनुसार यदि जन्म, मास, गोचर और दशा, अंतर्दशा, स्थूलदशा आदि में ग्रहपीड़ा होने का योग है।
· किसी महारोग से कोई पीड़ित होने पर।
· जमीन-जायदाद के बँटबारे की संभावना हो।
· नोकरी या संपदा के जाने का अंदेशा हो।
· धन-हानि हो रही हो।
· राज भय/सरकारभय हो।
· मन धार्मिक कार्यों से विमुख हो गया हो।
· राष्ट्र/घर का विभाजन हो गया हो।
· मनुष्यों में परस्पर घोर क्लेश हो रहा हो।
· त्रिदोषवश रोग हो रहे हों।
महामृत्युंजय मंत्र जाप में सावधानियाँ
महामृत्युंजय मंत्र का जप करना परम फलदायी है। लेकिन इस मंत्र के जप में कुछ सावधानियाँ रखना चाहिए जिससे कि इसका संपूर्ण लाभ प्राप्त हो सके और किसी भी प्रकार के अनिष्ट की संभावना न रहे। अतः जप से पूर्व निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए
· जो भी मंत्र जपना हो उसका जप उच्चारण की शुद्धता से करें।
· एक निश्चित संख्या में जप करें। पूर्व दिवस में जपे गए मंत्रों से, आगामी दिनों में कम मंत्रों का जप न करें। यदि चाहें तो अधिक जप सकते हैं।
· मंत्र का उच्चारण होठों से बाहर नहीं आना चाहिए। यदि अभ्यास न हो तो धीमे स्वर में जप करें।
· जप काल में धूप-दीप जलते रहना चाहिए।
· रुद्राक्ष की माला पर ही जप करें।
· माला को गोमुखी में रखें। जब तक जप की संख्या पूर्ण न हो, माला को गोमुखी से बाहर न निकालें।
· जप काल में शिवजी की प्रतिमा, तस्वीर, शिवलिंग या महामृत्युंजय यंत्र पास में रखना अनिवार्य है।
· महामृत्युंजय के सभी जप कुशा के आसन के ऊपर बैठकर करें।
· जप काल में दुग्ध मिले जल से शिवजी का अभिषेक करते रहें
· महामृत्युंजय मंत्र के सभी प्रयोग पूर्व दिशा की तरफ मुख करके ही करें।
· जिस स्थान पर जपादि का शुभारंभ हो, वहीं पर आगामी दिनों में भी जप करना चाहिए।
· जपकाल में आलस्य व उबासी को न आने दें।
· मिथ्या बातें न करें।
· जपकाल में स्त्री सेवन न करें।
· जपकाल में मांसाहार त्याग दें।
हमारे यहाँ मिलने वाला सम्पूर्ण महामृत्युंजय यंत्र महाशिवरात्रि को ११ ब्रह्मानून द्वारा प्राणप्रतिष्ठाति/Activated/Energized किया जाता है.