१०००८ मंत्रों द्वारा २१ ब्राह्मणों ७२ घंटो जाप द्वारा अभिमंत्रित पवित्र अक्षय वट वृक्ष की जड़
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ये है हज़ारों वर्षों पुराना वो अक्षय वट वृक्ष जिसके बारे में कहा जाता है कि महाभारत युद्ध से पहले मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही कुरुक्षेत्र की भूमि पर इसी वृक्ष के नीचे रथ पर खड़े होकर भगवान् श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता जी में वर्णित उपदेश दिए थे, उनको धर्म और शरीर कर्म का परमज्ञान दिया था
यह अक्षय वट है महाभारत के युद्ध का एकमात्र साक्षी. यह वही बरगद है जिस की छांव में धनु धारी अर्जुन ने परिजनों के खिलाफ शास्त्र उठाने से इंकार कर दिया था. दिया था ज्ञान परम का शरीर और आत्मा उन्हें ने कृष्ण श्री भगवान तब. दिया था मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता उपदेश के 18 अध्याय के हर शब्द व हर नाद को जिसने सार सहित सुना उस नर को कर्म और फल का रहस्य समझाते नारायण के विशाल रूप का दर्शन भी किया. हरियाणा के कुरुक्षेत्र 8 किलोमीटर दूर पेहोवा रोड पर ज्योतिसर आज भी गीता के उस अजर अमर ज्ञान की तरह चिरंजीव है
१०००८ मंत्रों द्वारा २१ ब्राह्मणों ७२ घंटो जाप द्वारा अभिमंत्रित पवित्र वट वृक्ष के पेड़ की जड़ जिसके नीचे श्री ने कृष्ण गीता का उपदेश दिया था. इसको धारण करते ही व्यक्ति का सांसरिक मोह भंग हो जाता है और वो करत्वपरायणता की मार्ग की तरफ अग्रसर होता है तथा गीता के गूढ़ ज्ञान को जानने की इच्छा जागृति होती है. व्यक्ति जीवन मरण के प्रश्न से निजात पाकर अपने श्रेष्ठ कर्मों का फल ग्रहण करता है. इसको सोमवार को सफेद वस्त्र में बांध कर या चांदी ताजीब मैं गायत्री मंत्र का उचारण करते हुए दाहिनी भुजा में धारण करें |
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